📰 वृंदावन (मथुरा)
पिछले करीब 2 माह से उत्तर प्रदेश के मशहूर बांके बिहारी मंदिर से जुड़े बांके बिहारी कॉरिडोर के विरोध में स्थानीय बृजवासियों ने जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं। अब बात केवल कॉरिडोर तक सीमित नहीं रही, क्योंकि भारत सरकार कभी भी वृंदावन संरक्षण अधिनियम (Vrindavan Sanrakshan Adhiniyam) लागू कर सकती है, क्योंकि सरकार को साफ़ दिखाई दे रहा है कि वनवासियों ने वन पर अतिक्रमण कर लिया है।
बांके बिहारी कॉरिडोर प्रोजेक्ट क्यों लाया गया था?
बांके बिहारी मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आपको बता दें भक्तों की भीड़ में काफी समय से दम घुटने से मृत्यु भी हो चुकी है। और प्रतिदिन सैकड़ों भक्तों से मंदिर परिसर में गोस्वामी मार पीट भी कर रहे हैं, जिसे देखकर देशवासियों में बृजवासियों के प्रति भयंकर विरोध हैं। इस भीड़ को नियंत्रित करने और दर्शन को “स्मार्ट” बनाने के उद्देश्य से सरकार ने बांके बिहारी कॉरिडोर योजना बनाई थी। इसमें मंदिर के आसपास की सड़कों और भवनों को हटाकर एक भव्य कॉरिडोर बनाया जाना था। परंतु इस प्रोजेक्ट के विरोध में बृजवासी प्रदर्शन कर रहे हैं। गोस्वामी पारिकरो ने सरकार को धमकाते हुए कहा कि भगवान बांके बिहारी के विग्रह को वृंदावन से कहीं दूर ले जायेंगे। बृजवासी मानते हैं कि बांके बिहारी, उनका लाला है । वे किसी को दर्शन नहीं कराये या नहीं, ये उनकी सम्पत्ति है। वे कह रहे है कि कोरिडोर में बांके बिहारी को विराजमान नहीं करेंगे।
वैसे आज वृंदावन को बृजवासियों ने धंधा वन बना दिया है। पेड़ों को काट कर लक्जरी होटल बना डाला। हजारों समितियों और NGO के संचालन सिर्फ धन कमाने के लिए किया जा रहा है। यहां तक कि शराब और मीट भी खाया पिया जा रहा है। लेकिन बृजवासियों ने उल्टे भारत सरकार को मूर्ख बनाने का काम किया है। स्थानीय लोग बोल रहे हैं कि यह योजना वृंदावन की परंपरागत गलियों, वृक्षों और संस्कृति को नष्ट कर सकती थी। इसलिए खिलाफ ब्रजवासियों और संतों ने कड़ा विरोध किया। जबकि सच्चाई कुछ और ही है।
अब वृंदावन संरक्षण अधिनियम पर नजर
अब जो सबसे बड़ी चिंता की बात है वह है “वृंदावन संरक्षण अधिनियम”। इस अधिनियम के तहत वृंदावन को एक संरक्षित धार्मिक और पर्यावरणीय क्षेत्र घोषित किया जा सकता है। हालांकि सरकार ने इस पर अभी तक कोई विशेष निर्देश नहीं दिए हैं। क्योंकि वृंदावन के इतिहास में भी वहां एक विशेष प्रकार के वृक्ष थे , जिसे वृंदा के नाम से जाना जाता है। जिसे संरक्षण का दर्जा नहीं मिलने के कारण स्थानीय वनवासियों और बृजवासियों ने देखते ही देखते नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। धन के भूखे-प्यासे वनवासी, प्रिया प्रियतम के निज वन को खा गये। आज सरकार साफ़-साफ़ देख रहीं हैं कि वनवासियों ने वन पर अतिक्रमण कर लिया है। वृंदावन सरंक्षण अधिनियम के तहत निम्नलिखित नियम बन सकते हैं:-
- धंधा वन के बृजवासियों या वनवासियों की जमीन और संपत्ति पर प्रतिबंध लग सकता है
- निर्माण कार्य, व्यापार, और आवाजाही पर पूरी तरह रोक लग सकती है
- अतिक्रमणकारी मुआवजे के हकदार नहीं है, फिर भी सरकार सुनरख या छठीकरा साइड फ्लैट दे रही है
- पूरे वृंदावन में वापस वृन्दा वन स्थापित किया जा सकता है।
- मंदिरों की जगह पेड़ों के कुंज बनायें जा सकते हैं
- वन में दुकानों का क्या काम, व्यापारी करण पर पूरी तरह बैन लग सकते हैं
- गुरु द्वारे की तर्ज पर प्लास्टिक, जूते चप्पल, वाहन, गुटखा पान मसाला, शराबियों इत्यादि पर पूरी तरह बैन लग सकता है
- शौचालय इत्यादि की व्यवस्था वन में उपलब्ध हो सकती है
- भक्तों या संतों के ठहरने के लिए वृंदावन से बाहर छत की व्यवस्था हो सकती है
- रात या दिन में जब चाहे, भक्तों को भजन, नाम जप या भक्ति के लिए पूरी छुट मिल सकती है
- NGO की आड़ में हजारों होटलों का संचालन किया जा रहा है, उन्हें बैन किया जा सकता है
- वृंदावन के सभी मंदिरों के संचालन के लिए एक विशेष प्रकार की समिति बनाई जा सकती है
- भक्तों के लिए प्रतिदिन लड्डू प्रसाद और भोजन की व्यवस्था हो सकती है
- सभी कुटिया और आश्रमों पर बैन लग सकते हैं जिन्हें सिर्फ वृंदावन से बाहर बनाने की अनुमति हो सकती है
- मंदिर सेवादारों की सेवा व्यवस्था, दान इत्यादि एक ही समिति के अंतर्गत हो सकता है।
वृन्दावन को कांक्रीट वन बनाने में अंग्रेजों के कुछ वन विनाशक अधिनियम भी सहयोगी बने है। जिस कारण आज वृंदावन को धंधा वन दिया गया है। काश! आज भारत में मोदीजी के होते हुए ये वृंदावन बच जाए। और फिर से सनातन संस्कृति का शंखनाद और ज्ञान केंद्र की स्थापना हो जायें। परंतु आप देख रहे हैं कि कुछ लोग, तुच्छ मानसिकता को पूरी करने के लिए सनातन धर्म के भक्ति केंद्रों को बर्बाद करने के कार्य में लगे हुए हैं। वृंदावन को कॉन्क्रीट वन बना दिया और पूरी तरह से धंधा वन बना दिया गया है।
🌳 वृंदावन के वृक्ष और वन क्यों हैं महत्वपूर्ण?
वृंदावन केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण की लीलाओं की भूमि है। यहां के वृक्ष, विशेषकर वृंदा वृक्ष (Tulsi की प्राचीन प्रजाति), कदंब, पीपल, और बेल वृक्ष सनातन संस्कृति का अहम हिस्सा हैं।
- श्रीमद्भागवत में भी वृंदावन के वनों का वर्णन है
- वृंदा देवी स्वयं वृक्ष रूप में निवास करती हैं
- यह वन क्षेत्र दिव्य ऊर्जा, जैव विविधता और भक्तिभाव का केंद्र है, जिनके नीचे भक्तों को प्रिया प्रीतम के दर्शन होते हैं।
सनातन संस्कृति और वृंदावन का महत्व
- वृंदावन 12 वन (द्वादश वन) का क्षेत्र है, जहाँ श्रीकृष्ण ने रासलीला, माखन चोरी, और गोपियों संग लीला की थी
- यह क्षेत्र सनातन धर्म का एक जीवंत प्रतीक है
- किसी भी प्रकार का आधुनिक निर्माण, कॉरिडोर या सरकारी योजना यहां की आध्यात्मिकता को नुकसान पहुंचा सकती है, परंतु इससे पहले ही स्थानीय लोगों ने वन को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है। पूरा धंधा बना दिया है।
❗ निष्कर्ष (Conclusion)
बांके बिहारी कॉरिडोर की योजना पर भले ही विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन अब वृंदावन संरक्षण अधिनियम एक नई उम्मीद की किरण है। यह कानून किसी भी समय लागू हो सकता है क्योंकि इस मांग को लेकर पिछले काफी सालों से भक्तों ने प्रदर्शन भी किया हैं। हमें वृंदावन की प्राकृतिक विरासत, धार्मिक गरिमा और स्थानीय संस्कृति को मिलकर बचाना होगा। अब देखना होगा कि भारत सरकार कैसे वृंदावन की समस्या को हल करेंगी।